प्रेम
की चाह में
वर्षों भटका हूँ मैं
कोई
चाहेगा बस उसका हो जाऊँगा
चलते
- चलते मेरे पाँव थक हैं गये
आँख
बस मूंदते ही मैं
सो जाऊँगा
जग फरेबी से मन ऊब ही है गया
कोई
भी स्वप्न आया तो खो जाऊँगा
खुशियों
से कब मिला था नहीं याद है
ढेर
सारी जो आयी तो रो जाऊँगा
खोजते
खोजते ख़ुद को थक हूँ गया
ले
जो जाये उसी राह को जाऊँगा
सोचता
हूँ अगर नेह का जल मिले
ज़िंदगी
पर जमी धूल धो जाऊँगा
एक अवसर मिले लेखनी को मेरे
प्रेम
के बीच शब्दों से बो जाऊँगा
कर
पराजित विसंगतियों को एक दिन
देखना
एक दिन सब का हो जाऊँगा
पवन
तिवारी
०९/०१/२०२२
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