यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

प्राक्कलन सारे धराशायी हुए

प्राक्कलन    सारे    धराशायी   हुए

तेरे आकर्षण ने मति को हर लिया

तेरे  आनन  से  हैं  दृग  हटते नहीं

लग रहा या प्रेम  मैंने  कर  लिया

 

रूप का ये ललाम  मायावी बड़ा

राह से जाते  हुए  भी धर लिया

प्रेम कर ले वरण तो सौभाग्य है

रूप को मैं जाने  कैसे वर लिया

 

रूप के लालित्य ने ही वेध डाला

उसने जैसे मेरी  मेधा चर लिया

देव  कैसे   हारे  होंगे   रूप   से

भुज में जैसे रूप ने मुझे भर लिया

 

हो गया मैं शिथिल  उसके द्वार  जाके

रूप से ही प्रेम  का  फिर  घर  लिया

उसको भी अपना दीवाना कर दिया

और फिर उसने भी मुझको वर लिया

 

पवन तिवारी

१५/०४/२०२२  

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