प्राक्कलन
सारे
धराशायी
हुए
तेरे
आकर्षण ने मति को हर लिया
तेरे
आनन से हैं दृग हटते
नहीं
लग
रहा या प्रेम मैंने कर लिया
रूप
का ये ललाम मायावी बड़ा
राह
से जाते हुए भी धर लिया
प्रेम
कर ले वरण तो सौभाग्य है
रूप
को मैं जाने कैसे वर लिया
रूप
के लालित्य ने ही वेध डाला
उसने
जैसे मेरी मेधा चर लिया
देव
कैसे हारे होंगे रूप से
भुज
में जैसे रूप ने मुझे भर लिया
हो
गया मैं शिथिल उसके द्वार जाके
रूप
से ही प्रेम का फिर घर लिया
उसको
भी अपना दीवाना कर दिया
और
फिर उसने भी मुझको वर लिया
पवन
तिवारी
१५/०४/२०२२
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