ज़िंदगी
से रही एक अभिलाषा बस
प्रेम सच्चा
मिले बात इतनी
कही
ये घुमाती
रही इतने भर के लिए
कितना
अपमान और बतकही भी सही
एक
अभिलाषा का दंड इतना बड़ा
प्रेम
सच्छा मिले बात इतनी
कही
तू घुमाती रही इस नगर उस नगर
तुझपे
विश्वास कर बाँह
तेरी गही
हर
नगर ठोकरें हर नगर छल मिले
प्रेम
की जम सकी ना कहीं ना दही
हाय
पूरी जवानी मेरी छीन
ली
प्रेम
सच्चा मिले बात
इतनी कही
मौत
से भी भयानक तू है ज़िन्दगी
तेरे चक्कर
में भटके हैं सारी
मही
रोज
तिल-तिल मुझे मारती तू रही
सच यही था
बता देती पहले यही
ज़िन्दगी
इसमें ही ज़िन्दगी खा गयी
प्रेम
सच्चा मिले बात इतनी
कही
मृत्यु ही सत्य है
ज़िन्दगी बस भरम
प्रेम
सुंदर सा छल कर लो जो बतकही
एक सच के लिए है घुमाया बहुत
बात
सब खुल गयी कुछ भी ना अनकही
मृत्यु
ही ध्येय है ज़िंदगी
का परम
प्रेम
सच्चा मिले बात इतनी कही
पवन
तिवारी
०६/०५/२०२२
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें