यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 30 जुलाई 2022

बस उहा - पोह में थोड़े झटके हुए

बस उहा - पोह में  थोड़े  झटके  हुए

अपने ही  आप  से  थोड़े  लिपटे हुए

कहना चाहूँ मगर डर है इनकार का

बात  इतनी  सी है किन्तु अटके हुए

 

दिल को कुछ दिन से हूँ हौंसला दे रहा

किन्तु दिल है कि, दिल पे नहीं ले रहा

ऐसे  में   बात   बिन   बात  कैसे  बने

मेरा  दिल  मेरा  ही  सुनने   से   रहा

 

दोस्तों   ने   कई   बार   मुझसे  कहा

प्यार कर,प्यार कर, मैंने सुन के सहा

पर मेरा दिल है सतयुग सा नैतिक बड़ा

कोई  आये  मेरा  दिल  ले  जाये  बहा

 

ऐसा होगा  तभी, होगा  होगा  तभी

वरना दिल का बसेगा नहीं घर कभी

कोई  आये  मेरे  दिल  पे  डाका करे

दोस्तों  सारे  मिल  के दुआ दो अभी

 

पवन तिवारी

१९/०६/२०२२

1 टिप्पणी:

  1. मन के स्तर को बहुत सूक्ष्मता से शब्दांकित किया है प्रिय कविराज 👌👌👌👌🙏

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