यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 30 जुलाई 2022

कहेगा क्या जग

कहेगा क्या जग इसके कारण फँसते हैं

संशय लोक लाज से  भी हम धँसते हैं

जो अपनी  सुनते अपने  ढंग  से जीते

सुख संतोष साथ  में  उनके  बसते हैं

 

पीड़ा  में  भी झूठ  - मूठ  का  हँसते हैं

अंतरतम की ग्रीवा   को निज कसते हैं

निज स्वभाव के उलट आचरण हैं करते

इसीलिये  दुःख बारी – बारी डसते हैं

 

उम्र से कुछ ज्यादा ही भारी बस्ते  हैं

लोग वस्तुओं से  भी  ज्यादा सस्ते हैं

थोड़ा सोच समझकर श्रम का अस्त्र गहें

फिर जीवन को मिलते अच्छे रस्ते हैं

 

बातें तो हम भी कुछ  अच्छी करते हैं

पर जीवन में सही सही नहीं धरते हैं

जब भी अच्छी  बातें जीवन में लाते

अपने क्या अन्यों के भी दुःख हरते हैं

 

पवन तिवारी

०९/०६/२०२२    

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