कल्पना
में तुम्हारी बनी अल्पना
अन्य
कोई नहीं क्यों तुम्हीं सोचना
मन
नियत कर चुका था तुम्हीं अभिलषित
वेग
अपने भी हिय का नहीं रोकना
दृग
हैं जो चाहते दृश्य को देखना
नेह दो ऐसे
भावों को मत फेंकना
प्रेम
अभिसार हो करके
असंग हो
हर
किसी व्याधि से हो अधिक वेदना
लोचन लोचना की है आलोचना
है प्रथम राग
व्याघात को मोचना
दृष्टि
कलुषित नहीं नेह की है तृषा
राग
लोचन लिए हो सुगम लोचना
फिर
स्वतः नष्ट व्यवधान हो जायेंगे
दो हृदय प्रेम
के एक में पायेगे
स्वर उठेंगे
नये शून्य के पार तक
उर
के संग काया के रोम भी गायेंगे
पवन
तिवारी
१६/०६/२०२२
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