देख
रहे हैं हम भी सपने
औरों सा पूरा करना है
कर्म
प्रधान तो प्रभु बोले हैं
करो
कर्म फिर क्या डरना है
जिनके
सपने
सत्य हुए हैं
उनसे
बस साहस लेना
है
शेष
तो अपनी मेहनत के बल
औरों
को संबल देना है
गीले
नैनों
में
खुशहाली
के फिर पुष्प खिलाने हैं
बुझे
बुझे कोमल चेहरों को
भी सम्मान दिलाने हैं
मान
रहे हैं, जान रहे हैं
अपने
भी दिन आने
हैं
बस
तिथि भर का भान नहीं है
लोग
हमें भी गाने हैं
लड़ते
- लड़ते बढ़ते रहना
हिय
से हमने ठाने हैं
जिनको
जो कुछ कहना कह लें
हम तो इक दिन छाने हैं
पवन
तिवारी
२५/०४/२०२२
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