कौन अपना कब तलक है समय ही जाने
लोग, लोगों को यहाँ निज स्वार्थ तक माने
लोगों को बस अपनी कहनी अपनी ही सुननी
फटा स्वर है फिर भी गाते ऊँचे स्वर गाने
दूसरों की प्रशंसा पर मुँह बनाते हैं
मात्र अपने चारणों के द्ववार जाते हैं
निज से कोई श्रेष्ठ मिल जाये तो कटते हैं
धन मिले तो धूर्त के भी गीत गाते हैं
ऐसे वातावरण से बचना बचाना है
मनुजता के ध्वज को भी आगे ले जाना है
वैरियों सा आचरण जब समय करता है
तब समझ लो काल को तुम्हें आजमाना है
आचरण के परीक्षा का समय तब ही सही होता
जो कुपथ का संगी होता वही पहले धैर्य खोता
सत्य का साथी उबरता ऐसे वातावरण में भी
ऐसों को कंधे पे अपने सीना ताने धर्म ढोता
पवन तिवारी
१०/११/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें