जितना
खुद को समेटा बिखरा हूँ
अपनों
को सबसे ज्यादा अखरा हूँ
अब
बिखरने पे जो आमादा हुआ
लोग कहते
हैं बहुत निखरा
हूँ
टूटकर
कितनी बार फिर से जुड़ा
कट गये पर,
था हौसले से उड़ा
लोग
हर बार कहे अबकी
गया
किन्त्तु
हर बार सही पथ पे मुड़ा
रोते
- रोते भी हँस पड़ा
हूँ मैं
देख
अन्याय लड़ पड़ा हूँ
मैं
कितना
नुकसान सहा हूँ ख़ुद का
किन्तु
सिद्धांत पर अड़ा हूँ मैं
कहे
अख्खड़ तो घमंडी कोई
मुझको
समझे थे हूँ
मंडी कोई
एक
अदने ने भरम तोड़ दिया
ढोंग
की खोला है कुंडी कोई
पवन
तिवारी
०५/१२/२०२१
(कल्याण शाम ४ बजे नये मकान में प्रवेश के दिन )
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