तुम
अकस्मात आये थे धीरे से हम
तुम
थे खुशियाँ बटोरे मिले हमको गम
तुममें
गति थी चपलता थी चालाकी भी
इसलिए
ज़िन्दगी हो गयी कुछ थी कम
यश
तो पाये
मगर अल्पकालिक रहा
तुम्हरे
मन ने भी अपमान कितना सहा
आज पसरी
है मुस्कान फीकी
तभी
मुझको संतोष है
सत्य को जो गहा
राह
लम्बी मगर सच्ची अच्छी
चुनो
जो
भी करना है करने से पहले गुनो
जल्दबाजी
व लालच भ्रमित करती है
झूठ बोले
बहुत सच की पर
सुनो
पवन
तिवारी
२१/११/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें