जिसको
वर्षों से भूलना
चाहूँ
अपने
कुछ् याद दिलाते रहते
ज़ख्म
जिनको मैं चाहता भरना
उसी
जगह पे हाथ हैं रखते
दर्द
कम हो न ऐसा करते कुछ
हाँ,
मगर दर्द पे पूछा
करते
जब
भी मिलते पुरानी ही बातें
पुराने
घाव ठीक हैं कहते
अब
तो घबराऊं कोई आये तो
दर्द
में मेरे हर्ष से रहते
मौज़
आती मेरी कहानी
में
उस
कहानी में हँस के वे बहते
ज़ख्म
कोई न दिखाना
अपने
लोग
ज़ख्मों में नमक हैं भरते
भरते
कुछ ज़ख्म समय आने पर
समय
के साथ दुःख भी हैं झरते
पवन
तिवारी
२४/०२/२०२२
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