तंतुओं
में भी स्वर
आ रहे हैं
रंध्र भी राग में
गा रहे हैं
पहुँची
थी गंध केवल
तुम्हारी
सब तुम्हारी तरफ जा
रहे हैं
रोम
पुलकित हुए जा रहे हैं
नैन
चंचल हुए जा रहे हैं
भाल
का तेज बढ़ने लगा है
गाल
रक्तिम हुए जा रहे हैं
शून्य
में घन घने हो रहे
हैं
वायु
चंचल मने हो रहे हैं
पुष्पों
की गंध कुछ बढ़ गयी है
पथ
लगें ज्यों सुगम हो रहे हैं
दृश्य
अच्छे सभी लग
रहे हैं
लग
रहा जैसे सब सज रहे हैं
धीमें
धीमें तुम्हीं चल रही हो
सब
तुम्हारी तरफ भाग रहे हैं
तुम
हो अनुपम सभी कह रहे हैं
रूप
का तेज सब सह रहे हैं
रूप
से मैं भी पीड़ित हूँ सच है
चुप
हैं अंदर से पर ढह रहे हैं
हम भी सीधे थे सच्चे रहे हैं
उर
को प्रतिक्षण संभाले रहे हैं
आ रही हो परीक्षा है मेरी
उच्चतम मान मेरे रहे हैं
पवन
तिवारी
२६/०५/२०२२
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