यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

तंतुओं में भी स्वर आ रहे हैं


तंतुओं  में  भी  स्वर   रहे हैं

रंध्र   भी  राग   में  गा  रहे  हैं

पहुँची  थी  गंध  केवल तुम्हारी

सब  तुम्हारी  तरफ  जा रहे हैं

 

रोम  पुलकित  हुए  जा  रहे हैं

नैन   चंचल  हुए  जा   रहे  हैं

भाल  का  तेज  बढ़ने  लगा है

गाल  रक्तिम  हुए  जा  रहे हैं

 

शून्य  में  घन  घने  हो  रहे हैं

वायु  चंचल  मने  हो  रहे  हैं

पुष्पों की गंध कुछ बढ़ गयी है

पथ लगें  ज्यों सुगम हो रहे हैं

 

दृश्य  अच्छे  सभी  लग रहे हैं

लग रहा जैसे सब  सज रहे हैं

धीमें धीमें तुम्हीं चल रही हो

सब तुम्हारी तरफ भाग रहे हैं

 

तुम हो अनुपम सभी कह रहे हैं

रूप   का  तेज  सब  सह रहे हैं

रूप  से मैं भी पीड़ित हूँ सच है

चुप  हैं अंदर  से पर ढह रहे हैं

 

हम   भी  सीधे   थे सच्चे रहे हैं

उर को प्रतिक्षण संभाले रहे हैं

 रही  हो  परीक्षा  है मेरी

उच्चतम   मान    मेरे   रहे  हैं

 

पवन तिवारी

२६/०५/२०२२

 

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