जग भर के लिए अर्थ था मैं
तुम्हरे
दृग में कदर्थ था मैं
फिर
मेरा अर्थ निरर्थक था
उर
यूँ धड़का ज्यों व्यर्थ था मैं
पहले
कितना हर्षित था मैं
निज
के ही प्रति कर्षित था मैं
फिर
तुम आयी निज को भूला
तुम
पर ही आकर्षित था मैं
अब
सोचूँ क्या भोला था मैं
या रूप में
फँस डोला था मैं
या
प्रेम में सुधबुध भूल के मैं
अपने
हिय को खोला था मैं
पट
खुलते ही लुट गया था मैं
जैसे
बावरा भया
था मैं
तुमने
जब कस ठोकर मारी
गिर
गया खिलाड़ी नया था मैं
मेरा
क्या मैं तो
बस था मैं
थोड़ा
वैसा
अल्हड़ था मैं
तुम
होशियार रहना यारों
वैसे
पहले मैं भी था मैं
पवन
तिवारी
२३/०५/२०२२
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