तुम मुझे आज रूठ
जाने दो
खुद से ही खुद को
तुम मनाने दो
कल वही फिर अकेलापन
होगा
खुद को खुद थोड़ा
आजमाने दो
जो मनाते थे वही रूठ
गये
प्यार के हाथ, हाथ
छूट गये
क़त्ल करके मेरे
भरोसा का
वे हँसे और हम तो
टूट गये
तुमसे शिकवा
शिकायतें कैसी
हूँ मैं पागल कि ये
बातें कैसी
इक मुसाफिर से ऐसी
हमदर्दी
उसपे रोने की ये
बातें कैसी
घाव पर लेप बन के आई
तुम
गैर था, मेरे
लिए गाई तुम
मैं ऋणी हो गया सदा के लिए
रोते दिल को जो यूँ
हँसाई तुम
पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८
२०/०८/२०२०
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