झूठ को सबका साथ
मिला है
सच पीछे चुपचाप खड़ा
है
सच बोले तो हैं सब
बहरे
और झूठ बेफिक्र पड़ा
है
झूठ को ही सब सच
कहते हैं
उसकी धारा सब बहते
हैं
सच के साथ अकेला सच
है
सच के लोग दबे रहते
हैं
सारी सुविधा झूठ
उठाता
खुद बड़ा महान बताता
नाटक के सब रंग हैं
उसमें
तड़क भड़क के साथ है
आता
सत्य पराजित सा होता
है
कभी-कभी छुप-छुप
रोता है
झूठ से कलयुग की है
मित्रता
झूठ ही सब खेती बोता
है
फसलें ज्यादा झूठ की
होती
दुनिया उसका बोझा
ढोती
झूठ का पैंट सभी
पहने हैं
कहीं न दिखती सच को
धोती
पवन तिवारी
संवाद –
७७१८०८०९७८
१२/०८/२०२०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें