यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

मेरे अलउदीपुर


 

मेरे अलउदीपुर फिर से तेरा साथ मिला

खुद पे शर्मिंदा हूँ जो हँस के तेरा हाथ मिला

साल दर साल के शिकवे तेरे बकाया हैं

तुझसे मिलता हूँ तो लगता है मुझे नाथ मिला

 

अबकी सारी शिकायतें मुझसे कर देना

हाँ, मगर प्यार से झोली भी मेरी भर देना

मैंने भी शहर में धोखे फरेब खाए हैं

यहाँ बदमाशी करूँ पहले जैसे धर देना

 

अबकी मैं पोखरे से मिलकर बतियाऊंगा

आम के बाग़ से भी मिलकर मैं आऊँगा

बहुत दिन हो गये पलटू की भी गुमटी पे गये

उनके कुल्हड़ की चाय पीकर बताऊँगा

 

वैसे तो नरवा के खेत मुझे जाना है

और असनारे के मेले से मिल के आना है

सुनता हूँ देवरिया बाज़ार बड़ी चटकी है

मज़ा आयेगा मिलूँ उसका भी ज़माना है

 

 

सुनता हूँ चांड़ीपुर में रामघाट चमका है

सरयू जी से मिलने का मेरा मन भी हुमका है

सूना हूँ समोसा बहुत फिरतू का बिकता है

आज-कल भत्ते वाले फुनकू का जमका है

 

सुनता हूँ कोई नया भैंसा इधर सनका है

हाँ, सूना वो बोदई का लड़का अपने मन का है

जब से भिरगू का महुआ रामदीन काट लिए

सुनता हूँ, भिरगू का माथा तब से ठनका है

 

मैं ही बकते जा रहा तुम भी कुछ बोलो ना

अरे अलउदीपुर सुनो मुँह तो जरा खोलो ना

तुम्हरी ई चुप्पी मुझको डरा रही है अब

पवन की तरह यार तुम भी ज़रा डोलो ना

 

क्या बताऊं पवन तुम्हें आधी बाग़ काट दिया

बड़के पोखरा को भी सबने मिल के पाट दिया

जिन गलियों में तुम घूमते थे बंद हुईं  

मेरे अंगो को डाली की तरह छांट दिया

 

अब परती न कहीं ना ही कहीं ऊसर है

सब जगह सीमेंट ईंट मेरा रंग धूसर है

अपनी भी शान थी रौला था अलमस्ती थी

पुरानी बात कर वक़्त बड़ा दूसर है

 

कहाँ खपरैल है नरिया है कहाँ बस्ती है

कहाँ हैं बैल कहाँ हल कहाँ वो मस्ती है  

शहर की गुंडई भी गाँव तलक आ पहुँची

गाँव में गाँव की भी जान बड़ी सस्ती है

 

तुझको क्या बताऊं पवन तू दुखी होगा

नहीं कुछ पूछेगा तो तू बहुत सुखी होगा

जा आराम कर बिजली नहीं गयी होगी

वरना तू राम में भी सूरजमुखी होगा

 

मैं भी चुपचाप होके खिन्न बस चला आया

क्या सोचा था और गाँव आ कर क्या पाया

खटिया पर लेट गया नींद पर नहीं आयी

सोचता हूँ गाँव को सबने सता के क्या पाया   


मेरे अलउदीपुर फिर से तेरा साथ मिला

खुद पे शर्मिंदा हूँ जो हँस के तेरा हाथ मिला

साल दर साल के शिकवे तेरे बकाया हैं

तुझसे मिलता हूँ तो लगता है मुझे नाथ मिला

 

अबकी सारी शिकायतें मुझसे कर देना

हाँ, मगर प्यार से झोली भी मेरी भर देना

मैंने भी शहर में धोखे फरेब खाए हैं

यहाँ बदमाशी करूँ पहले जैसे धर देना

 

अबकी मैं पोखरे से मिलकर बतियाऊंगा

आम के बाग़ से भी मिलकर मैं आऊँगा

बहुत दिन हो गये पलटू की भी गुमटी पे गये

उनके कुल्हड़ की चाय पीकर बताऊँगा

 

वैसे तो नरवा के खेत मुझे जाना है

और असनारे के मेले से मिल के आना है

सुनता हूँ देवरिया बाज़ार बड़ी चटकी है

मज़ा आयेगा मिलूँ उसका भी ज़माना है

 

सुनता हूँ चांड़ीपुर में रामघाट चमका है

सरयू जी से मिलने का मेरा मन भी हुमका है

सूना हूँ समोसा बहुत फिरतू का बिकता है

आज-कल भत्ते वाले फुनकू का जमका है

 

सुनता हूँ कोई नया भैंसा इधर सनका है

हाँ, सूना वो बोदई का लड़का अपने मन का है

जब से भिरगू का महुआ रामदीन काट लिए

सुनता हूँ, भिरगू का माथा तब से ठनका है

 

मैं ही बकते जा रहा तुम भी कुछ बोलो ना

अरे अलउदीपुर सुनो मुँह तो जरा खोलो ना

तुम्हरी ई चुप्पी मुझको डरा रही है अब

पवन की तरह यार तुम भी ज़रा डोलो ना

 

क्या बताऊं पवन तुम्हें आधी बाग़ काट दिया

बड़के पोखरा को भी सबने मिल के पाट दिया

जिन गलियों में तुम घूमते थे बंद हुईं  

मेरे अंगो को डाली की तरह छांट दिया

 

अब परती न कहीं ना ही कहीं ऊसर है

सब जगह सीमेंट ईंट मेरा रंग धूसर है

अपनी भी शान थी रौला था अलमस्ती थी

पुरानी बात कर वक़्त बड़ा दूसर है

 

कहाँ खपरैल है नरिया है कहाँ बस्ती है

कहाँ हैं बैल कहाँ हल कहाँ वो मस्ती है  

शहर की गुंडई भी गाँव तलक आ पहुँची

गाँव में गाँव की भी जान बड़ी सस्ती है

 

तुझको क्या बताऊं पवन तू दुखी होगा

नहीं कुछ पूछेगा तो तू बहुत सुखी होगा

जा आराम कर बिजली नहीं गयी होगी

वरना तू राम में भी सूरजमुखी होगा

 

मैं भी चुपचाप होके खिन्न बस चला आया

क्या सोचा था और गाँव आ कर क्या पाया

खटिया पर लेट गया नींद पर नहीं आयी

सोचता हूँ गाँव को सबने सता के क्या पाया   

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

११/०८/२०२०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें