झूठ से रिश्ते बिगड़ते जा रहे
हैं
सच की नज़रों से उतरते
जा रहे हैं
छल गये खुद ही थे छलने जा रहे
थोड़ा - थोड़ा अब वो
गलते जा रहे हैं
अपने को अपना ही कह
कर ठग लिए
स्वार्थ सधते ही
वहां से भग लिए
मिलने खाति र जिनसे
थे बेताब रहते
देखते ही
उनको लम्बे डग लिए
झूठ के ईंटों से
रिश्ता मत बनाना
स्नेह भी ऊपर से
केवल मत जताना
आधे मन से कुछ भी है
फलता नहीं
पास आना जो किसी के
पूरा आना
देर होती सच के
सम्बन्धों में पर
माना औरों से कठिन
होती डगर
सच में रिश्ता हिय
से है यदि जुड़ गया
होगा अनुपम जिंदगी
का फिर नगर
आज-कल तो लोग गिरते
जा रहे हैं
स्वार्थ से ही
ज्यादा मिलते जा रहे हैं
नकली रिश्ते देर तक
टिकते नहीं
विश्वास के स्तम्भ
हिलते जा रहे हैं
जो भी करना सच से ही
सम्बन्ध करना
प्रेम से जीवन के दृढ़
अनुबंध करना
फिर कठिनता सरलता में बदलेगी
रिश्तों का तुम नेह
से ही निबन्ध करना
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
१०/०८/२०२०
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