मेरे गीत दर्द के
गायक
दर्द जिये हैं दर्द
के लायक
जो भी हैं पीड़ा के
अगुआ
उनके लिए ए हैं
सुखदायक
हम किसान के भी बेटे
हैं
गीत खेत में भी लेटे
हैं
किसने किसने खेत चरा
है
लिख लिखकर खुद ही
मेटे हैं
जिसका लम्बा सा ये
हल है
उसके दुःख का कोई हल
है
पर मेरे गीतों के हल
में
उसका छोटा सा इक हल
है
मेरे गीत अकाल लिखे
हैं
बाढ़ का त्रासद भाल
लिखें हैं
कृषकों के झूठे भाषण
पर
सरकारों के गाल लिखे
हैं
धूल व ढेले मेरे सगे
हैं
चिकने-चुपड़े देख भगे
हैं
कोठी वाले क्या
जानेंगे
मेड़ों पर मेरे गीत
उगे हैं
दूब का गीत सुनाने
वाले
आलू के संग खाने
वाले
ठेंठ के ठाठ को सब
ना समझें
समझें ऐसे गाने वाले
थोड़े से पर हीत
मिलेंगे
कच्ची राह के मीत
मिलेंगे
तुम्हें मिलाने ले
जाऊँगा
गाँवों में मेरे गीत
मिलेंगे
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
२/०८/२०२०
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