हिय का खेत मेरा
बंजर था तुमने उसे बनाया उपवन
ऐसे प्रिय को कैसे
ना मैं अर्पित कर दूँ अपना तन मन
हिय के खेत में
खुशहाली है फसलें प्रेम की लहराती हैं
इससे पहले भटक रहा था आवारा मन
वन वन वन
आम के जैसा बौराया
हूँ जब से तुमको मैं पाया हूँ
जंगल-जंगल भटक रहा
था लौट के अपने घर आया हूँ
प्रेम कलश तुमसे
पाकर मैं छलक उठा पूरा अन्दर से
बड़े दिनों तक खोया
मन था अब जाकर खुल के गाया हूँ
धूप को तुमने छाँव
बनाया इक सुंदर सा ठाँव बनाया
प्रेम से तुमने
वीराने को इक सुंदर सा गाँव बनाया
थोड़ी-थोड़ी जान रहा
मैं महिमा प्रेम की दिन-प्रतिदिन
तपती हुई जवानी पर
प्रिय प्रेम का सुंदर छाँव बनाया
तुम मेरे जीवन का
मान हो नंगे बदन पे तुम परिधान हो
तुम ऐसी गुणवान
प्रिये हो बिना वाद्य के सुर में गान हो
प्रेम मिला तो सब कुछ सुंदर जीने की लालसा बढ़ी
है
अब समझा क्यों प्रेम
है पूजित ईश्वर का यह परम मान है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक – poetpawan50@gmail.com
30/07/2020
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