अपने तन को उल्लास
दिया
मेरे मन को वनवास
दिया
जीवन भर अविश्वास रहे
छल का ऐसा विश्वास
दिया
जो अपने का भी ना
होता
वह धीरे - धीरे सब
खोता
खुद के चरित्र में
दाग़ लगा
तन को घिस-घिस कर है
धोता
पर के परिवार पे छत
डाला
मन के विपरीत में मत
डाला
तन की अभिलाषा की
खातिर
हिय के मयूर को हत
डाला
अब भटक रहा है वन-वन
में
हो रहा तिरस्कृत
जन-जन में
अपराध करे जो निज के
संग
गिरकर मरना निज के
मन में
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
०५/०८/२०२०
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