अंदर ही अंदर उर
डोले
कोई उसकी सांकल खोले
सब के बस का ये भी
नहीं है
उर उर की भाषा में
बोले
प्रेम जाल हैं बड़े
अनूठे
सुंदर बदन पे ही सब
टूटे
मन की राह में बदन
की माया
सो मन से सब रहे
अछूते
प्रेम को पाना प्रभु
को पाना
बड़ा कठिन है मन तक
जाना
देह राह में है भटकाती
उसके आगे प्रेम
घराना
हिय जब हिय से है
मिल जाता
सब पावन पावन हो
जाता
तब जाकर आनन्द मिले
है
नन्द कहीं पीछे रह
जाता
पवन तिवारी
०४/०७/२०२०
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