गैरों ने मुझको प्यार दिया
अपनों ने मुझको लूटा है
ऐसे - ऐसे ताने मारे
घर बार तलक सब छूटा है
जिसको दिल की बगिया सौंपी
उसने ही चमन को कुचला है
रिसता घावों को देखकर मेरे
मन हर्ष से उसका मचला है
मेरे पावन प्रेम को हँसकर
प्रेम रूप ने छल डाला
प्रेम अग्नि की आहुति में
घी के बदले में जल डाला
ऊपर से था रूप चाँद सा
हिय में कलुष बड़ा भारी था
इसी सोच में पड़ा अभी तक
क्या वह उर सच में नारी था
पर तेरे छल के कारण मैं
जीवन छोड़ नहीं सकता
नयी वाटिका रोपूंगा फिर
वो माली जो ना थकता
सच तो ये मैं प्रेम पथिक हूँ
ये मन छल से ना रुकता
खुद ही प्रेम दिया औ बाती
दीप अखंड जो ना बुझता
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
०९/०७/२०२०
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