सबके अपने अपने सपने
जितनी जरूरत उतने
अपने
संबन्धों को नाप रहे हैं
स्वारथ के अनुसार
हैं अपने
सबको नाम प्रशंसा चाहिए
जगह–जगह अनुशंसा चाहिए
खुद के जय की चिंता
सबको
व्यक्ति भी सबको
शंसा चाहिए
सबके लम्बे हाथ चाहिए
एक नहीं कई नाथ चाहिए
प्रतिभा पर विश्वास
रहा रहा
षड्यंत्रों का साथ चाहिए
चारों तरफ है आपा धापी
खुद ही जाँचे अपनी कापी
किसे कहें सच्चा या झूठा
थोड़े बहुत सभी हैं
पापी
शब्दों में भी विकार
आ गया
कविता में बाज़ार आ गया
ऐसे में जग से क्या
आशा
भ्रष्टों में पत्रकार आ गया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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