आप बस पाठक हैं !
सुधी पाठक हैं !
तब तो आप
अवश्य जानते होंगे !
लेखक की दो शक्लें
होती हैं ;
जरासंध के जैसी,
आधी शक्ल उसका लेखन,
आधी शक्ल उसका जीवन,
क्या आप ने उसकी
दोनों शक्लें देखी
हैं ?
यदि दोनों शक्लें
मिलती हैं तो
हाँ, वह एक सच्चा
लेखक है.
हाँ, महान होना न
होना समय तय करता है.
पर एक सुधी पाठक के
रूप में
आप, यह अवश्य तय कर
सकते हैं.
कि आप पढ़ रहे हैं.
एक सच्चे या झूठे
लेखक को,
आप के काल के लेखकों
को
पढ़ने के साथ उससे
जीवन में
मिलना भी अवश्य
चाहिए.
ताकि आप सच्चे और सुधी पाठक
होने का संतोष पा
सकें.
और जिसे आप पढ़ रहे
हैं
उसे पूरा पढ़ सकें.
लेखक और उसका लेखन
मिलकर ही एक लेखक का
सही चित्र उकेर सकते
हैं.
अगर नहीं उकेरते तो
वह सच्चा लेखक नहीं.
हाँ, महान बनाना या
न बनाना
तो समय के साथ में
है.
यदि लेखक के लेखन
और उसके जीवन में
कोई साम्य नहीं है
तो
वह लेखक है, किन्तु
बहुरुपिया लेखक !
लेखक ( सच्चा लेखक)
कभी बहुरुपिया नहीं
होता.
मुझे लगता है,
अब मुझे चुप हो जाना
चाहिए !
और आप को विचार हेतु
छोड़ देना चाहिए
अकेला, ताकि
आप एक पाठक के रूप
में
तय कर सकें कि आप ने
कितने सच्चे लेखकों
को पढ़ा है या
जानते हैं !
या लेखक मिले ही
नहीं,
बहुरूपिये मिले !
यदि आप एक अदद लेखक
को
अब भी खोज रहे हैं
तो
मैं आप को एक पता लिखवा सकता हूँ.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक - poetpawan50@gmail.com
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