यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 21 मार्च 2020

लेखक की शक्ल




आप बस पाठक हैं !
सुधी पाठक हैं !
तब तो आप
अवश्य जानते होंगे !
लेखक की दो शक्लें होती हैं ;
जरासंध के जैसी,
आधी शक्ल उसका लेखन,
आधी शक्ल उसका जीवन,
क्या आप ने उसकी
दोनों शक्लें देखी हैं ?
यदि दोनों शक्लें मिलती हैं तो
हाँ, वह एक सच्चा लेखक है.
हाँ, महान होना न होना समय तय करता है.
पर एक सुधी पाठक के रूप में
आप, यह अवश्य तय कर सकते हैं.
कि आप पढ़ रहे हैं.
एक सच्चे या झूठे लेखक को,
आप के काल के लेखकों को
पढ़ने के साथ उससे जीवन में
मिलना भी अवश्य चाहिए.
ताकि आप सच्चे और सुधी पाठक
होने का संतोष पा सकें.
और जिसे आप पढ़ रहे हैं
उसे पूरा पढ़ सकें.
लेखक और उसका लेखन
मिलकर ही एक लेखक का
सही चित्र उकेर सकते हैं.
अगर नहीं उकेरते तो
वह सच्चा लेखक नहीं.
हाँ, महान बनाना या न बनाना
तो समय के साथ में है.
यदि लेखक के लेखन
और उसके जीवन में
कोई साम्य नहीं है तो
वह लेखक है, किन्तु
बहुरुपिया लेखक !
लेखक ( सच्चा लेखक)
कभी बहुरुपिया नहीं होता.
मुझे लगता है,
अब मुझे चुप हो जाना चाहिए !
और आप को विचार हेतु
छोड़ देना चाहिए अकेला, ताकि
आप एक पाठक के रूप में
तय कर सकें कि आप ने
कितने सच्चे लेखकों को पढ़ा है या
जानते हैं !
या लेखक मिले ही नहीं,
बहुरूपिये मिले !
यदि आप एक अदद लेखक को
अब भी खोज रहे हैं तो
मैं आप को एक पता लिखवा सकता हूँ.

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८ 

अणुडाक - poetpawan50@gmail.com  

  
  

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