बेटियाँ, बिटियाँ, बेटियाँ,
बेटियाँ
प्रेम से हैं खिलाती यही
रोटियाँ
इनसे ही रक्षाबंधन का त्योहार है
इनसे ही प्रेम का जग
में व्यवहार है
दो कुलों की यही बनती
हैं ज्योंतियाँ
बेटियाँ, बिटियाँ, बेटियाँ, बेटियाँ
प्रेमिकायें यही, ये ही हैं पत्नियाँ
ये ही माँ हैं, यही प्यारी मौसियाँ
सारे रिश्तों की
बुनती यही आशियाँ
बेटियाँ, बिटियाँ, बेटियाँ, बेटियाँ
प्रेम की भूखी हैं,
उसमें खो जाती हैं
जिसके घर जाती हैं
उसकी जाती हैं
ये ही हैं जो नहीं मानती जातियाँ
बेटियाँ, बिटियाँ, बेटियाँ, बेटियाँ
सारी इज्ज़त का ठेका
इन्हें ही मिला
कोई ग़लती करे भोगें ये ही सिला
सारे रिश्तों की
इनपे सिंकी रोटियाँ
बेटियाँ, बिटियाँ,
बेटियाँ, बेटियाँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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