आज-कल मेरे पास
काम बहुत थोड़ा है .
पर कोई कोई कहता है,
आप तो,
बहुत काम करते हैं.
कवितायेँ लिखना,
कहानी लिखना,
लोगों को सुनाना,
सोचना और
अपने लिखे हुए को
पढ़ कर हँसना ! खुश
होना ;
और अपने आप से
ख़ूब बातें करना,
झगड़ना
यदि इसे काम मानते
हैं तो
फिर मेरे पास बहुत
काम है.
वैसे तो उसके पास भी
बहुत काम है.
पर कोई कोई कहता है
?
उसके पास काम नहीं
है.
देश को, संस्कृति
को, राजनीति को,
अपने से आगे बढ़ते
लोगों को
अगर गाली देना,
उनकी निंदा करना,
कोसना और
उन पर खर्च कर देना
पूरी स्याही
बिना किसी कहानी,
कविता
या सार्थकता के,
तो फिर उसके पास
बहुत काम है.
उसकी तुलना में तो,
मेरे बारे में,
वो कहावत बिल्कुल
ठीक है.
“घर बैठा है”
ऐसे में मुझे मेरा
घर बैठना
अच्छा लगता है.
हाँ, इस पर भी अगर
आप
दागते हैं प्रश्न तो
क्षमा करें,
मैं आप को कोई उत्तर
नहीं दूँगा.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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