यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

उमर का अहं


 वो जिनकी उमर पर  
बुढ़ापा शब्द जंचने लगता है
या उनके संबोधन में
बुढ़ापा शब्द होता जा रहा है चस्पा
या हो गया है स्थायी
वे उन सभी को मानने लगते हैं बच्चा
जिनकी उमर के साथ युवा, जवान या
प्रौढ़ शब्द जंचने लगता है
ऐसा नहीं कि उन्हें उनकी
उमर का नहीं है आभास


बस वे उन्हें अपने से
कमतर मानते हैं और
कह करके बच्चा
जताते हैं स्वयं को श्रेष्ठ
यह भी एक अहं की तुष्टि है
कुछ अपवादों का मिलना
लगता है अच्छा
पर अक्सर नहीं होते भाग्यशाली 
हाँ, कभी- कभी सार्वजनिक रूप से
नैतिकता का कम्बल ओढ़ कर
बोल जाते हैं ज्ञान की
होती नहीं कोई उम्र
और बघारने के लिए ज्ञान
स्मरण करते हैं शुकदेव को
यहाँ भी वे अपनी सज्जनता का
ठोक रहे होते हैं खूँटा
अपनी खत्म होती उम्र के गुमान में
प्रतिभा को नकारते-नकारते एक दिन
बिना प्रतिभा के मर जाते हैं 


पवन तिवारी
संवाद ७७१८०८०९७८ 


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