वो जिनकी उमर पर
बुढ़ापा शब्द जंचने लगता है
या उनके संबोधन में
बुढ़ापा शब्द होता जा रहा है
चस्पा
या हो गया है स्थायी
वे उन सभी को मानने लगते
हैं बच्चा
जिनकी उमर के साथ युवा, जवान या
प्रौढ़ शब्द जंचने लगता है
ऐसा नहीं कि उन्हें उनकी
उमर का नहीं है आभास
बस वे उन्हें अपने से
कमतर मानते हैं और
कह करके बच्चा
जताते हैं स्वयं को श्रेष्ठ
यह भी एक अहं की तुष्टि है
कुछ अपवादों का मिलना
लगता है अच्छा
पर अक्सर नहीं होते भाग्यशाली
हाँ, कभी- कभी
सार्वजनिक रूप से
नैतिकता का कम्बल ओढ़ कर
बोल जाते हैं ज्ञान की
होती नहीं कोई उम्र
और बघारने के लिए ज्ञान
स्मरण करते हैं शुकदेव को
यहाँ भी वे अपनी सज्जनता का
ठोक रहे होते हैं खूँटा
अपनी खत्म होती उम्र के
गुमान में
प्रतिभा को नकारते-नकारते
एक दिन
बिना प्रतिभा के मर जाते
हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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