काम नहीं उनको वे
लड़ते जा रहे हैं
कुछ काम करके भी
मरते जा रहे हैं
कुछ सड़कों पर
गालियाँ दे रहे हैं
कुछ हैं कि बस
सुलगते जा रहे हैं
वो जहाँ भी बेहतर
करने जा रहे हैं
हालात हैं कि बिगड़ते जा रहे हैं
उनके दुश्मनों की
तादाद क्या बढ़ी
वो और भी ज्यादा निखरते
जा रहे हैं
वे जो सुशासन के नाम
पर आये हैं
वसूली के ही धंधे
बढ़ते जा रहे हैं
उन्होंने सपने महलों
के क्या देखे
उनके झोपड़े भी उजड़ते
जा रहे है
सभी को खुश करने के
चक्कर में
कि अपने भी बिछड़ते जा रहे हैं
जब से तय किया है
लक्ष्य उसने
उसके तेवर ही बदलते
जा रहे हैं
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
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