यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 30 जनवरी 2020

वे हमको देहाती


वे हमको  देहाती  हमको  घास - फूस समझे हैं
सच तो ये है जो भी हैं हम हम अपने दम से हैं

तुम हमें जानों  हिन्दू  मुस्लिम  सिख  इसाई जानो
दुनिया तो बस इतना जाने हम भारत से भारत के हैं

सच व झूठ वफ़ा  गद्दारी  सबकी अपनी परिभाषा है
मिट्टी का अपमान करें जो मेरी नज़र में दुश्मन वे हैं

निज भाषा को हीन बताते पर भाषा का गान करें
उनसे पूछो वे  भारत में  और भारत के कब से हैं  

धर्म जाति और पन्थ वर्ण पर तुमको जो गाना गाओ
हम  इस  माटी के  बेटे हैं  और  इसी  की गाते हैं


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८

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