क्या बसन्त कैसा बसन्त
सबके अपने अपने बसन्त
अपनी भी एक मान्यता
रही
कब होता है अपना बसन्त
देवों से लेकर मानव
तक
सबने गुण गाये हैं बसन्त
जब हम खुश होते जीवन
में
तब बसन्त आता है
भँवरों, पुष्पों से
सरसों तक
गाये जाते हैं गुण
बसन्त
जब कोई मेरे मन को
भाये
तब बसन्त आता है
माना वह सबको भाता
है
प्रेम बहुत सा वह
पाता है
कुछ जब हम अच्छा
पाते हैं
तब बसन्त आता है
अपना तो अंदाज अलग
है
अपना एक अलग ही जग
है
मौसम अपने मन का आये
तब बसन्त आता है
प्रकृति हँसी है
पुष्प खिले हैं
वृक्षों में नव पल्लव आये
अपने अधर किन्तु जब
खिलते
तब बसन्त आता है
उस बसन्त का स्वागत
है
जो सारी ऋतुओं का
नृप है
मेरे उर का नृप
प्रसन्न जब
तब बसन्त आता है
शब्द गीत और कथा
काव्य में
सबने गुण गाये बसन्त
के
पर निर्धन जब खुलकर
हँसता
तब बसन्त आता है
वंचित शोषित से क्या नाता
जिस बसन्त के सभी
प्रशंसक
जब कभी हर्ष आये उनके गृह
तब बसन्त आता है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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