यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

रविवार, 24 नवंबर 2019

रिश्तों के कितने चौराहे


रिश्तों    के    कितने   चौराहे
मार्ग दिशा भ्रम होने लगता
कल जो अपना आज गैर का
हर दिन छल सा होने लगता

रिश्तों की मौलिकता मर गयी
नैतिकता आदमी से  डर गयी
जो  कहते  विश्वास पात्र  अब
उनसे  भी  भय  होने   लगता

आचरण   का   क्षरण  हुआ है
भ्रष्ट भी अब व्याकरण हुआ है
ऐसे   में   क्या  बचेगी   भाषा
पुस्तक से  डर   होने   लगता

मत भी अब असहिष्णु हो गये
अत्याचारी    विष्णु     हो    गए
अब  स्वतंत्र  स्वच्छंद   हुए  हैं
लोकतन्त्र   जड़    होने   लगता

भावनाओं  पे  चढ़ी है चाबुक
अधर खुले हो कर भी हैं चुप
ऐसा दौर अचम्भा कुछ नहीं
पुरुष  भी  स्त्री  होने लगता

पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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