यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

कुछ सँवरते- सँवरते- सँवरते गये


कुछ  सँवरते- सँवरते- सँवरते  गये
कुछ बिखरते- बिखरते-बिखरते गये

जितनी चाहत किये जिन्दगी के लिए
उतना  मरते  ही मरते ही मरते गये

जो निडर थे वे बढ़ते चले चल दिये
जो डरे फिर तो  डरते ही डरते गये

एक  गलती  पे  टोके  नहीं जो गये
फिर वो करते ही करते ही करते गये

चढ़ने से ज्यादा मुश्किल ठहरना है जी
वो  जो  उतरे   उतरते  उतरते  गये

प्रेम पाने से भी कुछ निखरते मगर
जो गुरु  पा  लिए  वो  संवरते गये

पवन साहित्य से प्रेम  जिनको हुआ
जग को  सम्वेदना से वो भरते गये

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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