कुछ सँवरते- सँवरते- सँवरते गये
कुछ बिखरते- बिखरते-बिखरते
गये
जितनी चाहत किये
जिन्दगी के लिए
उतना मरते ही
मरते ही मरते गये
जो निडर थे वे बढ़ते
चले चल दिये
जो डरे फिर तो डरते ही डरते गये
एक गलती पे
टोके नहीं जो गये
फिर वो करते ही करते
ही करते गये
चढ़ने से ज्यादा
मुश्किल ठहरना है जी
वो जो उतरे
उतरते
उतरते गये
प्रेम पाने से भी
कुछ निखरते मगर
जो गुरु पा लिए वो संवरते गये
पवन साहित्य से
प्रेम जिनको हुआ
जग को सम्वेदना से वो भरते गये
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक –
पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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