यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 24 जुलाई 2019

माना कि शहर के लिये


माना  कि  शहर के  लिये  मैं थोड़ा  हैरानी हूँ
मगर बसता जहाँ  भारत मैं उसकी तो रवानी हूँ

नये  लिबास  वालों  मेरी धोती पर जो हँसते हो
कभी सोचा तुम्हारे पुरखों के अना की निशानी हूँ

पुराना  लग रहा हूँ जानता हूँ और अंदाज़े बयाँ भी
तुम्हारे यादों की ही तुम्हारे सामने ज़िंदा कहानी हूँ

मैं देसी हूँ मैं फक्कड़ हूँ और भी जो भी कुछ भी हूँ
मगर  सच है  पुराने  गाँव  की  सच्ची जवानी हूँ

तुम्हारे  दोस्त  की ब हना जो भागी है सुना उसको
है  पापा  गाँव का अच्छा है मैं उसकी ही दीवानी हूँ  

शहर  के  हो  तभी  तो  वृद्धा आश्रम छोड़ आते हो
उदाहरण  में हम  ही आते  तभी  तो   परेशानी हूँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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