माना कि शहर
के लिये मैं थोड़ा हैरानी हूँ
मगर बसता जहाँ भारत मैं उसकी तो रवानी हूँ
नये लिबास वालों मेरी
धोती पर जो हँसते हो
कभी सोचा तुम्हारे
पुरखों के अना की निशानी हूँ
पुराना लग रहा हूँ जानता हूँ और अंदाज़े बयाँ भी
तुम्हारे यादों की
ही तुम्हारे सामने ज़िंदा कहानी हूँ
मैं देसी हूँ मैं
फक्कड़ हूँ और भी जो भी कुछ भी हूँ
मगर सच है पुराने
गाँव की सच्ची
जवानी हूँ
तुम्हारे दोस्त की ब हना जो भागी है सुना उसको
है पापा गाँव
का अच्छा है मैं उसकी ही दीवानी हूँ
शहर के हो तभी तो वृद्धा आश्रम छोड़ आते हो
उदाहरण में हम ही आते तभी
तो
परेशानी हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत
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