लिखते होंगे बे
- बहर हम किन्तु बहरे हम नहीं
वैसे तो ग़म हैं बहुत
पर ग़म का हमको ग़म नहीं
चीज हो तो बदल दें किरदार बदलते नहीं
जो कि अंदर से हैं वैसे
जाते उनके खम नहीं
लाशों पे लाशें
फ़कत चुपचाप वो देखा किया
आदमी कहता है खुद को
और आखें नम नहीं
होता उनसे कुछ नहीं
जो कहते हैं कुछ इस तरह
हम दिखाते हैं उसे अब वरना हम भी हम नहीं
हो गये इतिहास कितने हम ही ज्यों के त्यों रहे
और कहते सिरफिरे भारत में
कोई दम नहीं
तुम रहो आगे
मगर अपना भी इक अंदाज है
बात हो जब सादगी की
फिर पवन कुछ कम नहीं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com
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