यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 2 जुलाई 2019

लिखते होंगे बे - बहर हम


लिखते  होंगे  बे - बहर हम किन्तु बहरे हम नहीं
वैसे तो ग़म हैं बहुत पर ग़म का हमको ग़म नहीं

चीज  हो  तो  बदल दें किरदार बदलते नहीं
जो कि अंदर से हैं वैसे जाते उनके खम नहीं

लाशों  पे  लाशें फ़कत चुपचाप वो देखा किया
आदमी कहता है खुद को और आखें नम नहीं

होता उनसे कुछ नहीं जो कहते हैं कुछ इस तरह
हम  दिखाते हैं उसे अब  वरना हम भी हम नहीं

हो गये  इतिहास कितने हम ही ज्यों के त्यों रहे
और  कहते  सिरफिरे  भारत  में कोई दम नहीं  

तुम  रहो  आगे  मगर  अपना भी इक अंदाज है
बात हो जब सादगी की फिर पवन कुछ कम नहीं



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक -  poetpawan50@gmail.com

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