यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 15 जून 2018

मेरे प्यारे देश इधर मैं कई दिनों से


मेरे प्यारे देश इधर मैं कई दिनों से
ठीक से सोया नहीं हूँ
कई दिनों से भीड़ में भी खोया नहीं हूँ
मैं, मेरे विचारों से बतिया रहा हूँ
कई दिनों से
दोनों की नींदें फड़फड़ा रही हैं

आखिर ये दोनों क्या ऐसा बतिया रहे हैं
जो हमसे मिलने का भी समय नहीं है
पता है मेरे प्यारे देश, हमारी बातें
तुम्हारी समस्याओं के बारे में थीं
हमें पकड़ में आयीं
तुम्हारी दो मूल समस्याएँ
इन्हीं से हैं फिर
हज़ारों- हज़ारों समस्याएँ

पहली समस्या गरीबी ज़िन्दाबाद
दूसरी अंग्रेज़ी ज़िन्दाबाद
पता है प्यारे देश तुम्हारी परेशानी
नेताओं के ह्रदय में बसे,
अधिकारियों के हृदय में बसे
इन नारों में
पल्लवित-पुष्पित होती रहती हैं
दिन - दूनी रात चौगुनी

तुम चुप क्यों हो प्यारे देश
समझ नहीं पाए शायद मेरी बात
हाँ, तुम्हारी तरह ही
देश का आम आदमी 
या कहें गरीब आदमी
वो भी नहीं समझ पाता मेरी बात
तभी तो तुम्हारी तरह वो भी है
सदा से परेशान

मैं फिर भी एक बार और
करता हूँ प्रयास
पता है मेरे प्यारे देश
हज़ारों करोड़ की योजनायें बनेंगी
गरीब रहेंगे तभी तो
उनके उद्धार के नाम पर
उसके ठेके अधिकारी
और नेता हड़पेंगे
गरीब रहेंगे  तभी तो
उनके घरों में नौकर
और फुवारियों में माली मिलेंगे

उनके ऊँचे महल
गरीब ही तो बनायेंगे
उनके नाक पर टिका गुस्सा
और गालियाँ  और तो और
उनकी भौड़ी गलतियों का ख़ामियाज़ा
कौन भुगतेगा....?
गरीब ही तो ....
होंगे नहीं गरीब तो
राज किस पर करेंगे
सारी तिकड़म गरीबी को
पाले रखने की है
गरीबी हटाओं तो
ऊपर का मेकप भर है
और हाँ
अंगरेजी ज़िन्दाबाद रहेगी
तो पता है,क्या होगा
मेरे प्यारे देश गरीब का बेटा
देशी भाषा पढ़ के
अधिकारी नहीं बन पायेगा
चपरासी और लिपिक ही बनेगा
और साहब की हाँ में हाँ कहेगा
सस्ता गरीब मँहगी अंगरेजी
नहीं खरीद पायेगा
और फिर उनके आगे
दुम हिलाएगा

पता है मेरे प्यारे देश
अगर अंगरेजी ज़िन्दाबाद न रही तो
फिर हिन्दी, उड़िया,कन्नड़,पंजाबी,मराठी
सभी ज़िन्दाबाद हो जायेंगी
फिर गरीब हिन्दी,
उड़िया,कन्नड़,पंजाबी,मराठी
पढ़कर भी अधिकारी बनेगा
और अमीर, साहब भी बनेगा
पता है फिर क्या होगा
अंगरेजी जिंदाबाद वाले
पैदल हो जायेंगे
ये तो नौकर का काम भी
नहीं कर पायेंगे ठीक से
माली का काम भी इनके बच्चे
शायद ही कर पायें कुशलता से


फिर तो हर जगह
गरीब पास होगा
बराबर की हिस्सेदारी होगी
उसका भी तुम्हारे तले सम्मान होगा
मेरे प्यारे देश
क्या तुम समझे मेरी बात
क्या तुम्हें तुम्हारी माँ का दिया नाम
भारत अच्छा नहीं लगता मेरे प्यारे देश



क्या तुम्हें तुम्हारे घर की बोली
पसंद नहीं मेरे प्यारे देश
क्या तुम्हें आम लोग
पसंद नहीं मेरे प्यारे देश
क्या तुम्हें अपनी संस्कृति,
अपनी परम्परा पसंद नहीं
मेरे प्यारे देश
अगर है तो हुँकारी के साथ
हुंकार भी भरो और
इन दोनों का प्रतिकार करो
मेरे प्यारे देश !

पवन तिवारी
सम्पर्क -७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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