बदल  रहा  है  वक़्त  साथ
में रिश्ते नाते भी 
अपने ही अपनों  को  छलते  आते  जाते भी 
स्वार्थ  ऊपर रिश्ते  नीचे किसको क्या कहना 
हंसकर आप की निंदा
करते आप की खाते भी 
संबंधों  का जो अवलम्ब
था वो ही टूट गया 
विश्वासों की डोरी
थी जो साथ ही छूट गया 
संवेदना  पर  लालच  की  सवारी हो गयी 
ऐसे  में  मानवता  वाला
घड़ा ही फूट गया 
अर्थ की खातिर
दुश्मन से मिताई हो गयी 
भाई  से  भाई  की  ही  रुसवाई हो गयी 
कोई  रिश्ता  स्थिर  नहीं  जमाने में रहा 
दौलत  खातिर  बाप से
ही ढिठाई हो गयी 
जो भी रिश्ता रखता
सोच के स्वार्थ खातिर ही 
लुट  जाने पर जान पड़े
कि था वो शातिर ही 
ऐसे में अपने  पथ पर
तुम सजग रहो हरदम
देखना मंजिल मिल
जायेगी तुमको आखिर ही 
पवन तिवारी 
संवाद – ७७१८०८०९७८ 
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
 
 
 
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