सुना है तुमने गाँव
को मैंने देखा है
मेरा जीवन गाँव का
लेखा-जोखा है
तुमने खाए होंगे
वेफर चिप्स बहुत
पर हमने खेतों में आलू बोया है
नंगे पाँव कभी काटों
से भेंट हुई
नंगे पैरों हमने
ढेला फेंका है
शहर की आँखों से
देखोगे गाँव भला
देखा बारिश में कैसे
चलता घोंघा है
तुम जिस गाँव को
ऐसा-वैसा समझे हो
शहर के लड़कों को वे
कहते गोगा है
शहर की चकाचौंध को
जीवन समझे हो
सीदा सहज गाँव है
हमने जीवन भोगा है
जिस धोती कुर्ते पर अक्सर
हँसते हो
तुम्हें पता क्या
देश का वो पहनावा है
तुमने फांका शर्म
नशा और तिकड़म को
हमने हंसकर गाँव की धूल
को फांका है
माना पवन ने शहरों
की है शान बहुत
मगर गाँव ही
सच्ची जीवन रेखा है
पवन तिवारी
संवाद – 7718080978
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com
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