दिन दिन भारी होता
रतिया पहड़वा
नाहकै में डोली लइनै
मोर कंहरवा
चार दिन संगे रहनै
गइनै फिर बिदेसवा
नाजुक उमिरिया में
छोड़लैं मजधरवा
अमवा बउरि गइनै मनई
चहकि गइनैं
खेतिया के चढ़ल जवानी
मोरे रमवाँ
कइसे गुजारी ई समइया
मोरे रमवाँ
आईगै बसंत कुल और
हलचल बा
बुढ़वन के चेहरन पे
चढ़ी गयल रंग बा
चारो ओर खुसहाली मेड़े
मेड़े हरियाली
हमरो करेजवा में
धुकनी उठत बा
धीरे-धीरे हँसी-हँसी
आवत बा फगुनवा
देवर जेठ करैं
कानाफूसी मोरे रमवाँ
बुढ़ऊ से हमके बचावा
मोरे रमवाँ
हमरो उमिरि बाटै
कबले सम्हारी
दिनवाँ में दस दाइं
दुआरा निहारी
समझाई मनवा के
झूठ-मूठ केतना
तोहरे परेमवा में
गइली जिनगी हारी
छोड़ी के बिदेसवा तू
घर आवा सइयां
तोरे बिन सूखल जात
बाटी मोरे रमवाँ
नाहित संग लेइ चला
मोरे रमवाँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणुडाक – poetpawan50@gmail.com
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