जीवन का धन एकाकीपन उसी को शब्द बनाता हूँ
मैं एकांत विरह का
कवि हूँ वेदना का स्वर गाता हूँ
बाहर देखा भीड़ लगी
है अंदर खड़ा अकेला हूँ
इसी अकेलेपन को सुर में धीरे - धीरे गाता हूँ
ये तो मनरंजन
करते हैं मनोरंजन
नहीं गीत मेरे
जिसको मन से मन ही
सुन सके ऐसे गीत मैं गाता हूँ
सुख दुःख का बस
निराकरण है सुख सच में केवल छल है
इसीलिये मैं सदा
- सदा से दुःख के गीत ही गाता हूँ
सुख के गीत जो गाते
हैं जीवन से कट
जाते हैं
मैं तो जीवन
का गायक हूँ
पीड़ा के स्वर गाता हूँ
गीत तो हैं अंतर की
वेदना हँसी में वे मर जाते हैं
वेदना के चीत्कार
को ही मैं ढाल गीत में गाता हूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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