बहस होती है
बहुधा बेकारों में
वैसे हो जाती
बातें इशारों में
जीने की खातिर संस्कृति
जरूरी है
झूठे भी होते
खुश त्योहारों में
वक्त है गर बुरा खुशी रो देती है
सूखते पेड़ देखे बहारों में
बात नीयत की है कुछ भी
हो सकता है
डोली को लुटते देखा कहारों
है जो साहस तो कुछ भी
असंभव नहीं
पेड़ को उगते देखा दीवारों में
सौदे में कोई
रिश्ता न चलता पवन
अपनों के हाथ बिकते बाजारों
में
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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