अभिलाषा है तेरे अधरों से बोलूँ
संभव है मैं कविता के
संग संग डोलूँ
इसीलिए मैं भटक रहा भाषा
के संग
कविता से तेरे अधरों पर
मिसरी घोलूँ
तेरा वर्णन कैसे करूँ मैं
अनुपम से कम कैसे कहूँ
मैं
इसीलिए शारदा शरण में
शब्द शक्ति बिन कैसे बहूँ
मैं
ज्योत्स्ना सी आभा
तेरी
रति के जैसी माया तेरी
जब से देखा मुदित-मुदित
हूँ
प्रणय भाव सी आशा मेरी
किया साधना शब्द मिले
हैं
कविता के कुछ रत्न मिले
हैं
रोम - रोम पर शब्द हैं उभरे
तुझ पर अनगिन छंद मिले
हैं
सोच रहा हूँ कविता में
तुझे ढालूँ मैं
सारे अलंकार, उपमाएँ बुला लूँ मैं
आमंत्रित कर लूँ सारे श्रृंगारों
को
छंद, सवैया, मुक्तक सब
लिख डालूँ मैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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