हम जो जीते हैं हम ही
जाने हैं
लोग अपने सुहाना जाने हैं
कितने कैसे कहाँ
से टूटे हैं
हँसे हैं हम पर सच जो
जाने हैं
हर घड़ी पर
सवाल आया है
एक सुलझा तो
दूजा आया है
दुखों के प्रश्न आए
हैं इतने
भूला सब, गया , कौन आया
है
कहने को अपना मगर संगदिल
है
फिर भी लगता है पास
मंजिल है
यह जो साहस का हुनर पाया है
गम में भी रखे जो जिंदादिल है
हर कोई अपना अपना देख रहा
सबको शक की नजर से देख
रहा
कोई शक की दवा न है जग में
यही जो दुख
के बीज बो है रहा
कहो ना दुख यूँ ही सुनते
जाओ
बने जो भी उसे करते जाओ
बात बन जाएगी करते - करते
कर्म की राह पर बढ़ते जाओ
नहीं बेबात न
रोना - धोना
भर दो साहस बस कोना कोना
जिंदगी लौट के करके आएगी
करेगी फिर तुम्हें चोना –
मोना
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com
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