सज धज के चल दिया था मैं
टूट - फूट
के लौटा मैं
मुस्काते - मुस्काते गया
था
लौटा बुझा उदास था मैं
खुली आँख से देख के सपने
मिलूँगा आज रहेंगे अपने
इसी सोच में उड़ा ही था
कि
गिरा धड़ाम जो मारा उसने
दाहिना बाजू खूब
चिल्लाया
दाहिना पैर भी था
मिमियाया
होंठ भी काँप उठा पीड़ा
से
आँखों में भी जल भर आया
किया फोन मित्र तब आये
तत्क्षण अस्पताल पहुँचाये
हुआ क्ष-किरण दाहिना
बाजू
सूचना पाकर डॉक्टर आये
पट्टी लगी हुई दवाई
चीखा याद आ गई माई
दर्द में भी हँसने का आदी
आ गई हंसी जो सुई लगाई
मित्र ने ही फिर रकम
चुकायी
होइहैं वहीं राम जो भायी
अपनी सोच,सोच ही रह गयी
विधना चाह तुरत होई जायी
घर आए पत्नी बौरायी
सब दुःख कांहें तुम पर
आयी
यही रह गया था बस बाकी
भरी आँख आ गई रुलाई
हँसकर उसको मैं दुलराया
अच्छा हुआ जो संकट आया
थोड़े ही निपट गया है
तेरा बुद्धू लौट जो आया [ दुर्घटना में घायल होने के बाद लिखी गयी कविता १६/१२/२०१८ ]
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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