यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

प्रकृति क्षरण














हम  आबाद  हुए  जाते  हैं
जग बर्बाद  किये  जाते  हैं
प्रकृति  का दोहन ऐसे करते
सब कुछ नाश किये जाते हैं

पानी , वायु  हुए  सब  दूषित
सुविधा  से  हम हुए  विभूषित
अपनी छाँव तलक हम खा गये
हम सब हो गये  इतने कुत्सित

कहने  को  हम सभ्य कहाते
मानवता  पर   अश्रु  बहाते
पर  हैं  शत्रु  हमीं मानव के
इक – दूजे  को  नहीं  सुहाते

जलवायु  बीमार  हो  गयी
मोटर की भरमार हो  गयी
जंगल कट कंक्रीट हुए सब
हरियाली भी मुहाल हो गयी

लोभ  हमें  ही  खा  जाएगा
कौन  कहाँ  क्या  ले जाएगा
निसर्ग का रक्त बहुत चूसा है  
मौत तलक  वही ले  जाएगा  

अब भी  बच  सकता है जीवन
प्रकृति की रक्षा का कर लो मन  
सब मिल प्रकृति का साथ जो दोगे
तब ही  रहेगा  सुखमय  जीवन

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें