हम  आबाद  हुए
 जाते  हैं 
जग बर्बाद  किये  जाते
 हैं
प्रकृति  का दोहन ऐसे करते 
सब कुछ नाश किये
जाते हैं 
पानी , वायु  हुए  सब  दूषित
सुविधा  से  हम
हुए  विभूषित 
अपनी छाँव तलक हम खा
गये 
हम सब हो गये  इतने कुत्सित 
कहने  को  हम सभ्य
कहाते
मानवता  पर   अश्रु  बहाते
पर  हैं  शत्रु
 हमीं मानव के 
इक – दूजे  को  नहीं
 सुहाते 
जलवायु  बीमार  हो  गयी 
मोटर की भरमार हो  गयी 
जंगल कट कंक्रीट हुए
सब 
हरियाली भी मुहाल हो
गयी
लोभ  हमें  ही
 खा  जाएगा 
कौन  कहाँ  क्या  ले
जाएगा 
निसर्ग का रक्त बहुत
चूसा है  
मौत तलक  वही ले  जाएगा
 
अब भी  बच  सकता
है जीवन 
प्रकृति की रक्षा का
कर लो मन  
सब मिल प्रकृति का
साथ जो दोगे
तब ही  रहेगा  सुखमय  जीवन 
पवन तिवारी 
संवाद – ७७१८०८०९७८ 
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com

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