अर्थ ने सम्बन्ध तोड़े
बहुत ने अनुबंध तोड़े
मैं सनातक का उपासक
धैर्य ने अवलम्ब जोड़े
अर्थ ने गृहस्ती फूँकी
अपनों की हर नज़र
चूकी
वक्त ने नयी दृष्टि
दे दी
पैबन्दों पर तब रफू की
इक सलीका नया आया
जीने का नया ढंग आया
दुःख में भी हँसते हैं
कैसे
इक नया ये हुनर आया
ख़ास थे अपरिचित हो
गये
व अंजाने परिचित हो
गये
नयों में नई दुनिया
बस गयी
वक्त बदला सब चित हो
गये
वक्त अर्थ को खींच के
लाया
इसी ने था कभी उसे
भगाया
प्रकृति का खेल
प्रकृति ही जाने
पर उसने जीवन समझाया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.
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