वक़्त ने ख़ूब कसके निचोड़ा मुझे
रग - रग हर जगह से है तोड़ा मुझे
आखिर मैं भी तो ठहरा
अजब आदमी
धैर्य, साहस ने फिर - फिर से जोड़ा मुझे
धैर्य, साहस ने फिर - फिर से जोड़ा मुझे
वो भी दशकों मुझे ही
डराता रहा
छल से अपने वो मुझको
छकाता रहा
यूँ अचानक फँसाता,
गिराता भी वो
मैं भी जिद्दी हूँ
खुद को हँसाता रहा
मैं उसे वो मुझे बस छकाने लगे
खेल हम अपने - अपने
दिखाने लगे
पहले वो जीतता अब शुरू मैं भी हूँ
वक़्त के चेहरे पे भी डर आने लगे
आदमी उसपे लेखक से
पंगा लिया
दान में पाप
ने जैसे गंगा लिया
अब वो आगे मैं उसके
हूँ पीछे चला
रोता वो मुंह में
मैं पान चंगा लिया
थकते-थकते उसे भी
थका ही दिया
डरते - डरते उसे भी डरा ही दिया
वक़्त डर कर छुपा - छुपी
है खेलता
आदमी का उसे दम दिखा
ही दिया
भूखा रह के भी हँसता
रहा मैं सदा
रिश्तों में धोखा खा
मुस्कराया सदा
आँसुओं को भी शब्दों में मैं ढाल कर
गीत के रूप में गुनगुनाया सदा
पवन तिवारी
संवाद - ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com
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