रोम - रोम पुलकित हो उठा
जागा यौवन पाकर बारिश
अधरों पर फिर प्यास
बढ़ गयी
उर में भी फिर बारिश
- बारिश
यौवन की लपटें झट बढ़कर
फिर बोली जरा सुन रे
बारिश
अगन लगा के मन भड़का के
कहाँ जा रही कामिनी बारिश
जब तक तृषा शांत
नहीं होती
बस बरसे जा बारिश – बारिश
जब भी आती है उसकाती
फिर भी प्यारी पहली बारिश
प्यास जगाती प्यास
बुझाती
लगन लगाती है ये बारिश
अधरों को भी है तड़पाती
कामदेव सी पहली
बारिश
बाहर शीतल अंदर गरमी
जादू सी कर जाए बारिश
बिन बारिश सारा जग
सूना
जीवन की आधार है बारिश
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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