गाँव से चलके शहर
क्या आया जैसे गाँव को भूल गया
बरगद, पीपल, आम के
नीचे वाली छाँव को भूल गया
जिन गाँवों में रमता
था वो बाँध के गमछा चलता था वो
शहर की थोड़ी हवा लगी
क्या दिल की ठाँव को भूल गया
जिस कंधे पर
बैठ के बबुआ मेला घूमा करता था
शहर से लौटा उन बाबा के छूना पाँव को भूल गया
देशी बेटवा शहर में जाकर पूरा ही अंगरेजी होई गवा
गाँव के नाम पे मुँह
बिचकाए गाँव-गिराँव को भूल गया
गाँव का बबुआ शहर
में पिट गया ढिशुम-ढिशुम के खेल में
लगता है वो, शहर में
जाकर देशी दाँव
को भूल गया
पवन तिवारी
सम्पर्क - ७७१८०८०९७८
poetpawan502gmail.com
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