बिन प्रेम के रहना
भी है कला
प्रेम में पड़के सहना
भी है कला
प्रेम पावन मिले
जिन्दगी में कभी
उसका सम्मान करना भी
है कला
प्रेम हो जाए तो
क्या है छुपता भला
कितना समझाओ भी ये न
सुनता भला
प्रेम पाए या जाए
भले जान ही
प्रेम कब धमकियों से
है डरता भला
प्रेम चर्चित हुआ जो
अधूरा रहा
जो अमर प्रेम है वो
न पूरा रहा
प्रेम में उच्च मानक
वही रच सका
प्रेम अध्याय जिसका
अधूरा रहा
प्रेम में लौट
बुद्धू जो घर आये हैं
वे ही शायर कवि बन
इधर आये हैं
टूटे उर की व्यथा
सीधे कैसे कहें
इसलिए शब्द के वे
नगर आये हैं
प्रेम में लौट कर हम
जो घर आये हैं
हम ही शायर कवि बन
इधर आये हैं
टूटे उर की व्यथा
सीधे कैसे कहें
इसलिए शब्द के हम
नगर आये हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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