यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

बिन प्रेम के रहना भी है कला



बिन प्रेम के रहना भी है कला
प्रेम में पड़के सहना भी है कला
प्रेम पावन मिले जिन्दगी में कभी
उसका सम्मान करना भी है कला

प्रेम हो जाए तो क्या है छुपता भला
कितना समझाओ भी ये न सुनता भला
प्रेम पाए या जाए भले जान ही
प्रेम कब धमकियों से है डरता भला

प्रेम चर्चित हुआ जो अधूरा रहा
जो अमर प्रेम है वो न पूरा रहा
प्रेम में उच्च मानक वही रच सका
प्रेम अध्याय जिसका अधूरा रहा

प्रेम में लौट बुद्धू जो घर आये हैं
वे ही शायर कवि बन इधर आये हैं
टूटे उर की व्यथा सीधे कैसे कहें
इसलिए शब्द के वे नगर आये हैं

प्रेम में लौट कर हम जो घर आये हैं
हम ही शायर कवि बन इधर आये हैं
टूटे उर की व्यथा सीधे कैसे कहें
इसलिए शब्द के हम नगर आये हैं

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com


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