प्रात दोपहर संध्या रात
चारो प्रहर बात ही
बात
ये तो तब है जब
सुखमय सब
बरना बिगड़े हर इक
बात
हिन्दू, मुस्लिम सिख
इसाई
प्रेम की ना कोई
होती जात
प्रेम का रोग लगे
चुप्पे को
फिर देखो करे कितनी
बात
धन संग स्वास्थ्य
मिला है जिनको
उनका हर दिन होता
ख़ास
बुरा समय चलता हो
जिनका
उनके लिए तो दिन भी
रात
जिसकी नहीं कल्पना
की है
वह भी तो हो जाता है
समय तुम्हारा अच्छा
है तो
सपनों से अधिक मिल
जाता है
जीवन को जी सकता वही
है
जो भी विषम में सम
होगा
हाय - हाय से घुटेगा
केवल
होनी से ना कम होगा
खुशियों का बस एक
ठिकाना
कुछ भी हो पर सुर
में गाना
खीझ के बुरा समय
भागेगा
गाओगे खुशियों का तराना
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com
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